Rakshabandhan हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे पूरे देश में खास धूमधाम से मनाया जाता है। इस पावन उपलक्ष्य को हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जोकि हिन्दू पंचांग के अनुसार अगस्त के आसपास होती है। इस वर्ष, रक्षाबंधन 30 अगस्त सुबह 08 बजे से 31 अगस्त सुबह 07 बजे तक है। क्युकी 30 अगस्त को सुबह 08 बजे भद्रा लगने की वजह से इस साल 2023 का रक्षाबंधन 31 अगस्त को सुबह 07 बजे से पहले तक ही मनाया जायेगा।, जब भाई-बहन एक-दूसरे के साथ अपने प्यार और समर्पण का प्रतीक बांधते हैं।

Rakshabandhan के परंपरा और इतिहास
Rakshabandhan का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसका संवाद पुराणों और महाभारत से जुड़ा हुआ है। यह भारतीय समृद्धि और संस्कृति की धारा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
अश्वमेध यज्ञ कथा: अश्वमेध यज्ञ की कथा में, सुनीति और विष्णु के द्वारिका नरक द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण द्वारा रक्षाबंधन का महत्व प्रमोट किया गया। जब द्रौपदी अपने हाथ में कटी सी रस्सी को चोटी कर लेती है, तो श्री कृष्ण के चोटे से उंगली पर चोटी कर देते हैं, और यह बंधन उनके बीच का अटूट बंधन दर्शाता है।
रानी कर्णावती और मुग़ल सम्राट हुमायूँ: एक और प्रसिद्ध कथा के अनुसार, मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमायूँ से मदद के लिए आग्रह किया और उनकी राखी बंधकर उन्हें अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। हुमायूँ ने इस पर उनकी सहायता की और उनकी इच्छा पूरी की।
रक्षाबंधन का महत्व रक्षाबंधन का महत्व भारतीय समाज में बहुत अधिक है। यह न केवल भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है, बल्कि यह एकता, साझेदारी, और समर्पण की भावना को प्रकट करता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए विशेष रूप से तैयारी करती हैं, और फिर उन्हें राखी बांधती हैं, जिससे एक अद्वितीय बंधन बनता है।
इस त्योहार के माध्यम से हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ एकता और समर्पण की भावना को मजबूती से जोड़ते हैं। यह दिन भाई-बहन के बीच विशेष प्यार और समर्पण की भावना को समझाता है और उसे बढ़ावा देता है। इस त्योहार के माध्यम से हम समाज में सामाजिक और पारंपरिक मूल्यों के प्रति अपना समर्थन दिखाते हैं और यह सामूहिक सहमति को बढ़ावा देता है।

रक्षाबंधन के महत्व:
रक्षाबंधन का महत्व विभिन्न प्रकारों में होता है:
- आपसी प्यार और समर्पण का प्रतीक: रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन, बहन अपने भाई की कलाई पर एक स्पेशल धागा, जिसे राखी कहा जाता है, बांधती है, और भाई बहन के प्रति अपना समर्पण और प्यार दिखाता है। यह बंधन उनके प्यार और साथीपन को प्रतिष्ठित करता है।
- परंपरा और धर्मिक महत्व: रक्षाबंधन का महत्व हिंदू धर्म में भी बहुत उच्च है। इसे भारतीय परंपरा का हिस्सा माना जाता है और यह भारतीय परंपराओं और मूल्यों को प्रकट करता है।
- परिवारिक एकता: रक्षाबंधन एक मौका प्रदान करता है परिवार के सदस्यों को एक साथ आने का, और परिवार के साथीपन को और भी मजबूत बनाने का। इस दिन परिवार के सभी लोग एक साथ आकर खुशियों का इजहार करते हैं और एक-दूसरे के साथ बिताने का समय बनाते हैं।
- समाजिक सामूहिकता: रक्षाबंधन समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देता है। यह दिन लोगों को एक-दूसरे के साथ प्यार और समर्पण की महत्वपूर्णता को समझने का और उसे अपने जीवन में अपनाने का अवसर प्रदान करता है।
- बहनों की सुरक्षा: रक्षाबंधन के द्वारा बहन अपने भाई से अपनी सुरक्षा की कामना करती हैं और भाई भी इसका वाचन देता है कि वह अपनी बहनों की सुरक्षा के लिए हमेशा उपस्थित रहेगा।
- एकाधिकार की भावना: रक्षाबंधन एकाधिकार की भावना को दर्शाता है, जिसमें भाई अपनी बहन के लिए रक्षा करने का आश्वासन देता है और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है।
समापन रूप में, रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो हमें भाई-बहन के बीच के प्यार और समर्पण की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। इसका महत्व न केवल परिवार में होता है, बल्कि यह समृद्धि, सामाजिक सामूहिकता, और प्यार की महत्वपूर्ण भावना को भी प्रकट करता है। इस त्योहार को मनाकर हम अपने प्यारे भाई-बहन के साथ खुशियों का त्योहार मनाते हैं और एक-दूसरे के साथीपन को और भी मजबूत बनाते हैं।
Rakshabandhan क्यों मानते है?
रक्षाबंधन का महत्व: कहानी के साथ
कहानी:
कहीं बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बड़ा ही प्यारा भाई-बहन जीवन बिता रहा था। उनका नाम अर्जुन था और उनकी छोटी बहन का नाम आराध्या था। अर्जुन और आराध्या का रिश्ता बहुत ही गहरा और प्यार भरा था। वे हमेशा एक-दूसरे के साथ खेलते, हँसते-हँसते बड़े हो गए थे।
एक दिन, गांव में रक्षाबंधन का त्योहार आया। आराध्या ने अपने भाई के लिए एक खास राखी बनाई थी, जिसमें वह अपने प्यार और आशीर्वाद की भावना समेट ले रही थी।
रक्षाबंधन के दिन, आराध्या ने अर्जुन की कलाई पर वो राखी बांधी। वह बहुत खुश थी क्योंकि यह उसका प्यार और समर्पण का प्रतीक था। अर्जुन भी अपनी बहन को एक खास उपहार देने के लिए तैयार था।
रक्षाबंधन के मौके पर, अर्जुन ने आराध्या को एक सुंदर गहना दिया, जिसे वह बहुत पसंद करती थी। उसने अपने भाई का आशीर्वाद लिया और उन्होंने एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का आश्वासन दिया।
महत्व:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि रक्षाबंधन एक बहन का भाई के प्रति उसका प्यार और समर्पण का प्रतीक होता है और भाई भी अपनी बहन के साथ समर्पण और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच एकता और प्यार की भावना को प्रमोट करता है और परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है। इसलिए हम रक्षाबंधन को एक महत्वपूर्ण और प्रिय त्योहार मानते हैं।
रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे हुआ?
रक्षाबंधन की शुरुआत का इतिहास भारतीय पौराणिक कथाओं में पाया जाता है, और यह कथा पुराने समय से ही प्रसिद्ध है। एक प्रमुख रक्षाबंधन कथा है द्रौपदी और श्रीकृष्ण के बीच की है:
द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा:
महाभारत काल की कथा के अनुसार, द्रौपदी एक पत्नी के रूप में पांच पांडवों की राणी थी। एक दिन, उनके पति युद्ध के लिए राजा दुर्योधन के दरबार में पहुंचे, जहां उन्हें दुर्योधन की नीच योजना का शिकार बनाया गया। दुर्योधन ने पांडवों को वस्त्रहरण करने की कोई अद्वितीय चुनौती दी, और उनके अनुसार वे अपने वस्त्रों को छोड़कर उनकी गोद में बैठने के लिए आना था।
इस संघर्ष में, द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का सहारा लिया। वह अपने वस्त्रों को छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की ओर मुड़ी और आपकी आंखों में आंसू थे। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के आंसू पोंछे और उसकी आंखों को बंद किया। फिर वह अपनी अनगिनत साड़ियों से द्रौपदी को ढ़कने दिए, जिससे उसकी अवमानजनक स्थिति से उबार हो सके।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के सम्मान को बचाया और उसके रक्षाबंधन की शुरुआत की। इस घड़ी में, वह द्रौपदी के बड़े भाई बने और उसके रक्षक बने, जिससे द्रौपदी ने उन्हें अपने भाई के रूप में प्राप्त किया।
इस कथा से स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन का मूल उद्देश्य सांस्कृतिक मान्यताओं में और बंधन की महत्वपूर्ण भावनाओं में समाहित होता है, जिसमें भाई अपनी बहन की सुरक्षा का आश्वासन देते हैं और बहन अपने भाई के लिए शुभकामनाएं देती हैं।